लोगों की राय

विभिन्न रामायण एवं गीता >> राधेश्याम रामायण

राधेश्याम रामायण

पं राधेश्याम कथावाचक

प्रकाशक : श्रीराधेश्याम पुस्तकालय प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :496
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4671
आईएसबीएन :1125422392546

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

431 पाठक हैं

राधेश्याम रामायण...

प्रथम पृष्ठ

रामायण और गीता की अनेक विद्वानों, भक्तों और लेखकों ने अपनी समझ और भावना से व्याख्या की है।

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तावना

श्रीगणपति श्रीगुरु नमो, नमो कवीश कपीस।
सब सन्तों के चरण में, नवा रहा हूँ शीश।।
उमा-शम्भु में जिस तरह हुआ रुचिर संवाद।
पहले उसी प्रसंग का, करना है अनुवाद।।
भारत में विख्यात है-सुन्दर गिरि कैलास।
गिरिजापति गिरिजा-सहित करते जहाँ निवास।।
उस तपोभूमि पर एक दिवस वट के नीचे बैठे हर थे।
सच्चिदानन्द के चिन्तन में एकाग्रचित भूतेश्वर थे।।
भगवान् त्रिलोचन के समीप भगवती उमा थी भ्राज रही-
मानों दाएँ हों परम पुरुष, बाएँ-दिशि प्रकृति विराज रही।।

खुली जभी योगेश की, वह समाधि अविराम।
मुख से निकला शब्द यह-‘जय मायापति राम’।।
गिरी गिरिसुता चरण में, तभी जोड़करहाथ।
पूर्व जन्म की यादकर, बोल उठीं-‘हे नाथ’।।

यह मायापति हैं राम कौन ? जिनकी इतनी धुन है मन में ?
क्या वही जानकी-जीवन हैं, जो व्याकुल बिचरे हैं वन में ?

 

कथा प्रारम्भ

 

जय परमेश्वर परम प्रभु परम पुरुष प्रणमामि।
आदि शक्ति आनँदमयी अखिलेश्वरी नमामि।।
कौशलेश मिथिलेश्वरी सिद्ध करेंगे काम।
वाणी, वर्णन के प्रथम-बोल ‘सिया वर राम’।।
सरयूतट प्रख्यात है, पावन अवध-प्रदेश।
थे नृपाल दशरथ जहाँ रघुकुल-कमल दिनेश।।
धन-धान्य पूर्ण था जन समाज, उद्योगपूर्ण जीवन भी था।
फागुन था रंग प्रमोदपूर्ण तो वृष्टिपूर्ण सावन भी था।।
धर्मानुसार थे चतुर्वर्ण, चतुराश्रम का पालन भी था।
सच्चा व्यवहार-मानवी था संगठन, चरित्र गठन भी था।।
सत्संग, कथा प्रवचन कीर्तन, अध्यात्म-मनन-चिन्तन भी था।
आँगन-आँगन में तुलसी थीं घर-घर में गोपालन भी था।।
सब था राजा के पुत्र न था दत्तक भी कोई लिया था न था।
विधना ने बेटा दिया न था तो था-घर का दिया न था।।
पुत्र-कामना में हुए नृप जब अधिक उदास।
हृदय व्यथा कहने गए गुरु वशिष्ठ के पास।।
पहले तो नत मस्तक होकर-फल चार चढ़ाए चरणों में।
फिर अर्घ्यरूप में अश्रुचार चुपचाप गिराए चरणों में।।
बोले-‘‘कर चुका विवाह तीन फिर भी फल उसका मिला नहीं।
है चौथापन आने वाला हृत्कमल अभी तक खिला नहीं।।...

 

गाना

 

अवध में है आनन्द छाया लाल कौशल्या ने जाया।
देख अनूप रूप बालक का चकित हुआ रनिवास।।
समाचार सर्वत्र सुनाने धाये दासी दास।
संदेशा नृप को पहुँचाया लाल कौशल्या ने जाया।।
बजी झांझ दुन्दुभी भेरियाँ छिड़े मांगलिक गान।
दशरथ को आनन्द आज है ब्रह्मानन्द समान।।
नन्दन ने नयनाञ्जन पाया लाल कौशल्या ने जाया।
ध्वज पताक तोरण कलशादिक सोहे बन्दनवार।।
मागध सूत, बन्दि गुण गावें भीड़ भूप के द्वार।
खजाना नृप ने खुलवाया, लाल कौशल्या ने जाया।।
सुमन वृष्टि करते थे सुरगण कह जय जगदाधार।
निराकार निलेंप निरंजन हुआ सगुण साकार।।
विश्व में विश्वम्भर आया, लाल कौशल्या ने जाया।
सभी प्रजावासी निज निज गृह-सजा रहे सानन्द।।
घर-घर मानों पुत्र हुआ है ऐसा है ऐसा है आनन्द।
बधावा, ‘‘राधेश्याम’’ गाया, लाल कौशल्या ने जाया।।

प्रथम पृष्ठ

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai